रविवार, 19 जनवरी 2020

 गुरुदेव सयाजी उबाखींनजी (U Ba Khin) करुणा और मैत्री के अवतार थे।

सरकारी जिम्मेदारियो में इस कदर व्यस्त रहने के बावजूद भी उनके मन में अधिक से अधिक लोगो की धर्म सेवा करने का उत्साह देखते ही बनता था। इतने व्यस्त जीवन में भी वे हर महीने साधना शिविर लगाने के लिये आवश्यक समय निकाल लेते थे। कोई दुखी संतप्त व्यक्ति उनके पास धर्म सिखने आये तो वे अपनी हज़ार असुविधाओं की भी अवहेलना करके उसे धर्म अवश्य सिखाते थे।  कभी कभी तो केवल एक दो साधको के लिये ही शिविर लगा लेते थे, और उनके लिये भी उतना ही कड़ा श्रम करते थे।  प्रत्येक साधक साधिका के प्रति उनके मन में असीम वात्सल्य उमड़ता रहता था। सभी उन्हें अपनी और से पुत्र पुत्री जैसे लगते थे।
  मृत्यु के 3 दिन पूर्व तक उन्होंने एक शिविर संचालन का कार्य पूरा किया और मृतयु के पहले दिन तक भी इक्के- दुक्के साधको को धर्म सिखाते रहे।

🌷 प्रत्येक साधक के प्रति उनकी असीम करुणा- मैत्री उमड़ती थी। समस्त प्राणियो के प्रति भी उनके मन में उतना ही असीम प्यार भरा हुआ था।
जो आश्रम में रहे हैं वे ही जानते हैं की उनकी असीम मैत्री-भावना के कारण वहां के सांप- बिच्छुओं तक ने अपना हिंसाभाव त्याग दिया था। सभी प्राणी उनकी असीम मैत्री से प्रभावित थे। आश्रम का कण- कण प्रेम-रस से सराबोर था।

🌲आश्रम के पेड़- पोधो की भी बड़े प्यार से सेवा करते थे।

🍀 आश्रम के फूल- फूल में, पत्ते- पत्ते में में उनके अंतर का प्यार छलकता रहता था।

यह उनकी मैत्री तरंगो का ही प्रभाव था की उस तपोभूमि के फलों का रस-मिठास भी अनूठा, फ़ूलो का रंग-रूप भी अनूठा और उनकी सुरभि- सुगंध भी अनूठी ही होती थी।

विपश्यना श‍िव‍िर में सम्मि‍ल‍ित होने के देखें साइट www.dhamma.org
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