रविवार, 19 जनवरी 2020

मंगल मैत्री - दोहा

• मंगल मैत्री

द्वेष और दुर्भाव का, रहे ना नाम निशान
स्नेह और सदभाव से,भरले तन मन प्राण  ।।1।।
मन मानस से प्यार ही,उर्मील उर्मील होय
रोम रोम से ध्वनी उठे, मंगल मंगल होय ।।2।।
दूर रहें दूरभावना, द्वेष रहें सब दूर
निर्मल निर्मल चित्त मे, प्यार रहें भरपूर ।।3।।
मेरे अर्जीत पुण्य मे, भाग सभी का होय
मेरे सुख मे शांती में,लाभ सभी को होय ।।4।।
मैं करता सबको क्षमा,करे मुझे सब कोय
मेरे तो सब स्वजन हैं, नही पराया कोय ।।5।।
जैसे मेरे दु:ख कटे, सब के दु:ख कट जाय
जैसे मेरे दिन फिरे, सब के दिन फिर जाय ।।6।।
इस दुखियारे जगत मे, सुखिया दिखें न कोय
शूध्द धरम फिरसे जगे, जन जन सुखिया होय
                                जन जन मंगल होय ।।7।।
नमन करे हम धरम को, धरम करे कल्याण
धरम सदा रक्षा करे, धरम बड़ा बलवान ।।8।।
सबका मंगल, सबका मंगल, सबका मंगल, होय रे
तेरा मंगल,तेरा मंगल,तेरा मंगल होय रे ।।9।।
दृश्य और अदृश्य जीवों का मंगल होय रे
जल के थल के और गगन के, प्राणी सुखिया होय रे ।।10।।
दसों दिशाओंके सब प्राणी, मंगल लाभी होय रे
निर्भय हो निवैर बने सब, सभी निरामय होय रे।।11।।
अंतरमन की गाठे छुटे मानस निर्मल होय रे
फिर से जागे धरम जगत में, फिर से होवे जन कल्याण
जागे जागे धरम जगत मे फिर से होवे जन कल्याण ।।12।।
जन जन मंगल,जन जन मंगल,जन जन मंगल होय रे
सबका मंगल,सबका मंगल  सबका मंगल होय रे ।।13।।
तेरा मंगल, तेरा मंगल, तेरा मंगल होय रे
भवतु सब्ब मंगल्, भवतु सब्ब मंगल्
भवतु सब्ब मंगल् .....

विपश्यना श‍िव‍िर में सम्मि‍ल‍ित होने के देखें साइट www.dhamma.org


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