शुक्रवार, 24 जनवरी 2020

🌷 राजकुमार सिद्धार्थ का गृह-त्याग🌷

🌷 राजकुमार सिद्धार्थ का गृह-त्याग🌷
सिद्धार्थ गौतम ने घरद्वार इसलिए नहीं त्यागा की “नारी हुई धन-संपत्ति नासी, मुड़ मुड़ाय हुए सन्यासी”. घर में सारा ऐश-ओ-आराम था, शाक्य वंश का राजकुमार था.
“कालं आग्मेय्य” : दरअसल समय पक गया था और एक लाख कल्प और चार असंख्य कल्प का “संकल्प” पूर्ण होने को आया था.
ये बालक शरीर में बत्तीस लक्षणों को लेकर पैदा हुआ था. ऋषि काल देवल जब इस बालक को देखने आया तो ऋषि की जटाओं में इस अद्भुद बालक का पाँव अटक गया जब ऋषि ने बालक के पाँव को देखा तो पहले प्रसन्न हुआ फिर रोने लग गया. प्रसन्न इसलिए हुआ की उसने देखा की यह बालक निश्चित ही “सम्यक-सम्बुद्ध” बनेगा, लेकिन जब ये सम्यक सम्बुद्ध बनेगा तब तक मै जीवित नहीं रहूँगा इसलिए उदास भी हुआ.
खैर... सोलह (१६) वर्ष की आयु में इस बालक का विवाह हुआ और उनतीस (२९) वर्ष की आयु में सिद्धार्थ ने गृह-त्याग किया, पैंतिस (३५) वर्ष की आयु में वह “सम्यक-सम्बुद्ध” बना और अस्सी (८०) वर्ष की पकी हुयी अवस्था में अंतिम श्वास छोड़ा.
इस व्यक्ति ने तेरह (१३) वर्ष तक बहुत ही संतुष्ट वैवाहिक जीवन का आनंद लिया और गृहस्थी के कर्तव्य-कर्म पूर्ण किये. छः (६) वर्ष मुक्ति के मार्ग की खोज में लगाये और पैतालीस (४५) वर्ष तक मुक्त (Enlightened) जीवन जीया. इन पैतालीस वर्षों तक बस सम्बोधि (विपस्सना) के मार्ग पर खुद भी चला और औरों को भी चलना सिखाया.
🌷 क्या हुआ था उस दिन?
ये बात बिलकुल सही है कि सिद्धार्थ ने उस दिन चार-निमित्त देखे थे. नदी के बटवारे के कारण सिद्धार्थ ने स्वयं जनपद (देश नहीं) छोड़ने का प्रण किया था. लेकिन केवल ये चार निमित्त ही गृह-त्याग के कारण नहीं थे. गृह-त्यागने के समय वह स्वयं एवं यशोधरा दोनों उनतीस वर्ष के थे. आपस में गहरी समझ स्वाभिक थी. उस समय तक उसके पिता और मौसी महाप्रजापति की उम्र अस्सी वर्ष से अधिक हो गयी थी. ऐसी अवस्था में सिद्धार्थ ने घर में अपने पिता और मौसी को तो श्वेतकेशी वृद्धो के रूप में देखा ही. इस उम्र तक उनमे से कोई कभी बीमार भी हुआ होगा. कोई अवश्य मरा भी होगा. अन्य नहीं तो भी शैशव अवस्था में अपनी जननी महामाया की मृत्यु के बारे में सुना ही होगा. किसी श्रमण को देखना भी नितांत नया अनुभव नहीं माना जा सकता क्योंकि वह श्रमण परंपरा का राजपरिवार था. श्रमणों को भिक्षा दान देना उनका सहज गृहस्थ धर्म था.
उस रात इन्हीं चिंतन से, वह - पहले से अधिक उद्दिग्न और संविग्न अवश्य हो उठा होगा वैराग्य का गहन संवेग-आवेग जागा. इसलिए इनको “संवेग-निमित्त” कह सकते है.
गृह-त्यागने के निर्णय वाले दिन ही यशोधरा ने पुत्र राहुल को जन्म दिया. घर लौट कर वह राजमहल के विलासकक्ष में कुछ देर मौन बैठा रहा. देर रात तक नृत्य-गान करती हुयी सभी नर्तकियां थक कर वहीँ अस्त-व्यस्त वस्त्रों में सो गयी. उनकी अवस्था देख कर मन में और अधिक क्षोभ और जुगुप्सा जागी. इससे तत्काल घर छोड़ने का निश्चय दृड़ हुआ.
जाने से पहले नवजात शिशु को एक बार देखने का सोचा, शयनकक्ष का पर्दा हटा कर देखा यशोधरा और राहुल गहरी नींद में है. यशोधरा के हाथ के कारण वह राहुल का चेहरा पूरी तरह नहीं देख पाया. इसके लिए यशोधरा को जगाना उचित नहीं समझा. यशोधरा जागेगी तो शिशु जागेगा. शिशु जागेगा तो उसके रोने की आवाज से पिता शुद्धोधन और मौसी प्रजाप्रती जागेंगे. सेवक सेविकायें जागेंगी. कोलाहल और कुहराम मच जाएगा. गृह त्यागने की योजना असफल हो जाएगी.
अतः शिशु की एक झलक देख कर ही यह निर्णय करके निकल पड़ा कि जब बोधि प्राप्त कर लूँगा, तभी इसे देखने आऊंगा.
🌷 एक बात और - बुद्धत्व (अर्हत्व) प्राप्त करने के लिए दस पारमिताओं को पूर्ण करना होता है उसमे एक “निष्क्रमण” की पारमि भी होती है. गृह-त्याग करना होता है.
राजकुमार ने भी सुन रखा था कि वह गृह-त्याग करेगा तो सम्यक सम्बुद्ध बनेगा और घर में रहेगा तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा. अंत में कठिन परिश्रम कर सम्यक सम्बुद्ध बना.
और अपने किये गए निर्णय के अनुसार और पिता शुद्धोधन के निवेदन पर घर आता है यशोधरा से राहुल से मिलता है. यशोधरा सिद्धार्थ गौतम “बुद्ध” को चरण-स्पर्श करती है. राहुल प्रसन्नचित्त से तथागत से मिलता है, मिलते ही उसे इतनी सुखद शांति और शीतलता का अनुभव हुआ कि उसके मुह से निकल पड़ा : “सुखा ते , समण, छाया’ति।“ – “श्रमण, तेरी छाया सुखद है।“
(यह सब प्रकृति की सुव्यवस्थित व्यवथा के तहत ही हो रहा था, धर्म अपना काम कर रहा था.)
(स्त्रोत: पाली वांग्मय त्रिपिटक, वि. वि. वि.)

विपश्यना श‍िव‍िर में सम्मि‍ल‍ित होने के देखें साइट www.dhamma.org


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